कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर https://shivchalisas.com